दुनियां की दुनियांदारी है
विद्वता पूर्ण शायर कवियों की लगता है, मतिमारी है
समझते हुए भी कहते है, दुनियां की दुनियांदारी है
कोई अब भी उलझाए हैं, बाला के केश जाल में लोचन,
जब कि, यूं ट्यूब वीडियो की एक झलक, सब पर भारी है
कोई तो नारी के तन को, इक मानचित्र समझे बैठे हैं
अनजान जगह की तरह खोजना पर्वत, नदियां जारी है
कोई संवेदनापूर्ण दिल से आंक रहे हैं विविध व्यथाएँ ,
खुशियों के साथ उपजतीं हैं ये, जीवन एक उर्वरा क्यारी है
कुछ एक,खेल प्रिय सृजनकार, राजनीति मेंं छक्के जडते,
शब्दों को उछाल माहौल बदलने मेंं, उनकी क्षमता न्यारी है
अधिकांश न अब तक परिचित हैंं ड्रोन और रोबोट सेवक से,
किस तरह बढाकर हाथ जिन्होनें मेहनत हलकी कर डारी है ।
दुनियादारी छोड चुके हम, अब तो मजिल कहीं और है
होड़ लगी है जगधारक से "श्री" उसकी निवृत्ति की तयारी है
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment