स्वर मिला स्वर में तुम्हारे
छेड नव तानें मधुरतम, इक नयी सरगम सजाऊं ।।
संकल्प था जो भी तुम्हारी चाहतेंं मुझसे रहींं ।
पूर्ण कर जैसींं अपेक्षित, चिर प्यार का वरदान पाऊं ।।
चाहत नहीं थी कभी भी, एक सपनों का महल हो ।
एक छोटा नीड़ चाहा, रूठो जहाँ तुम मैं मनाऊं ।।
संतुष्ट हूं शिकवा न कोई, पर जिन्दगी सार्थक बने जब ।
उदास चहरे पर किसी के खुशी की एक लहर लाऊं।।
घर घर में फैली असहिष्णुता, आज चिन्ता का विषय "श्री"
कौन सी संजीवनी ला सोचता इसको मिटाऊं ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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