Sunday, 5 January 2020

स्वर मिला स्वर में तुम्हारे

चाह थी इक स्वर मिला स्वर मेंं तुम्हारे गीत गाऊं ।
छेड नव तानें मधुरतम, इक नयी सरगम सजाऊं ।।
 
संकल्प था जो भी तुम्हारी चाहतेंं मुझसे रहींं ।
पूर्ण कर जैसींं अपेक्षित, चिर प्यार का वरदान पाऊं ।।

चाहत नहीं थी कभी भी, एक सपनों का महल हो ।
एक छोटा नीड़ चाहा, रूठो जहाँ तुम मैं मनाऊं ।।

संतुष्ट हूं शिकवा न कोई, पर जिन्दगी सार्थक बने जब ।
उदास चहरे पर किसी के खुशी की एक लहर लाऊं।।

घर घर में फैली असहिष्णुता, आज चिन्ता का विषय "श्री"
कौन सी संजीवनी ला  सोचता इसको मिटाऊं ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल

 

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