Sunday, 5 January 2020

कल जहाँ से लौटकर

कल जहां से लौट कर आये थे घर पर
 ये प्रवासी ।
आज उसकी याद में फिर क्यों उठी ऐसी उदासी ।।
 
संज्ञान था घर में उनके, रंग रोगन हो गया है।
कालिमा सब धूल चुकी है, "धूलपुर "है दिव्य काशी।

सुलभ पथ हैं, चमन हैं, नदियां, सरोवर, बाग हैं।
सन्तुष्ट होकर शांति से घर रह रहा है हर निवासी 

पर वस्तु स्थिति घर पै आकर कुछ और ही आयी नज़र 
वृत्तियां कुछ आसुरी आ सोच में करतीं, विलासी 

द्वेष ईर्ष्या इस तरह जन जन के मन, घर कर गयीं हैं
विघटन में हैं संयुक्त ढ़ेरों, अमन  है " श्री" मात्र आभासी ।

श्रीप्रकाश शुक्ल

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