स्वर मिला स्वर मेंं तुम्हारे
आने वाला समय हम पर, उंगलिया उठाएगा ।
छल छिद्र से परिपूर्ण सारे दिख रहे निर्णय तुम्हारे ।
विश्वास ही जब उठ रहा, सौहाद्र क्या बच पायेगा ।।
पारस्परिक स्नेह और सम्मान ही, एकता का मूल है ।
जब हैं यही दिल से नदारत, अपनत्व कब बन पायेगा
जाति के सपने सुनहरे, छल रहे हैं मानविकता ।
जब लुप्त होगी मनुजता तो शेष क्या रह जायेगा ।।
आओ सपथ लें साथ मिल, बटने न देंगे जाति, भाषा धर्म पर "श्री"
इक्किस सदी का युवा अब पहिचान नव बनायेगा ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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