मजहबी अन्धापन
सम्भव नहीं कोई भी अन्धा कुछ भी कहीं देख पाये ।
अन्जान रहे सच्चाई से यदि ज्ञानचक्षु भी मुद जाये ।।
कुछ जन्मजात होते हैं अंधे कुछ अन्धे हो जाते हैं ।
मजहब, धन, ऐश्वर्य, ख्याति भी अन्धापन दे जाते हैं ।।
मजहब के अन्धे पहले अपनी सूझ बूझ बिसराते हैं।
फिर झूठे बहकावे मेंं आ घर मेंं अशान्ति फैलाते हैं ।।
ऐसी अशांति घर मेंं, समाज मेंं रूप उपद्रव का लेती है
दावानल होती क्रोधाग्नि, देश के दृढ़ खम्भे ढह जाते हैं
मजहब के अन्धे जन्मजात "श्री" कभी नहीं पाये जाते,
रखकर दूर इन्सानियत से, जैहादी शिक्षा मेंं पाले जाते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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