रजनीगंधा मुस्कायें
बोयें ऐसा, अंकुरण बाद युग युग तक जिसे संजोयें ।।
बोयें इसमें ममता, समता, एकता और मानवता ।
साथ ढ़ेर सी सहनशीलता, जिससे आपा कभी न खोयें ।।
जो बोते हम वही काटते इसीलिए ये आवश्यक है ।
ऐसा कभी न हो कृतित्व, जिसके परिणाम सभी ढोयें।।
तुम कुम्भकार, बदलो विचार ऐसा कुछ अलग रचो जग में ।
हर आंगन में कलियां महकें,
रजनीगन्धा मुस्कायें ।।
जीवन मिला तो जीना सीखो, जीवन गुजारना कायरता है "श्री" ।
जो जीते औरों की खातिर, उनके नाम अमर होयें ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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