तुम मुझको जगाकर जगमगाओ
देश के मैं साथ हूँ प्रगति पथ पर, फर्ज़ बस इतना निभाओ।
जो पंथ में झपकी लगे, तुम मुझको जगाकर जगमगाओ।।
काटों भरा था रास्ता, अपनों ने ही कांटे बिछाये ।
अब भी भ्रमित है मानसिकता, आकर उन्हें सत पथ दिखाओ।।
ये बुलावा उनको है, हैं जो घर के सजग प्रहरी
रख प्रेम के बल पर भरोसा, रूठे हुओं को आ मनाओ ।।
दिलों को जोड़ पाता है नहीं, तर्क से जीता हुआ मसला,
जरूरत है मोहब्बत से सनी, कोई भी हिकमत आजमाओ।।
लाज़िमी है अहं से उठकर सभी, बड़प्पन खुद का दिखलायेंं
गफलत से, विखर जायेगा घर, मत बेबजह मौका गंवाओ ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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