Sunday, 5 January 2020

बूँद भर जल बन गया 

बूंद भर जल बन गया आज,
जन जीवन का असल मोल ।
थलचर जलचर हैं सभी त्रसित,
बिन पानी जीवन है डवां डोल ।।

टक टकी लगाए नीलाम्बर में,
अपलक नयनों से देख रहे हम ।
जो मेघ उठे जल भर आँचल में,
बरसे न धरा पर कहाँ हो गए गुम ।।

जो हवा चली शीतल सी तनिक,
सोचा कि पास में बरसा होगा ।
अविलम्ब यहाँ भी आ पंहुचेगा,
घनरस इतना निठुर न होगा ।।

आज प्रात की वेला में, कूंकें सब मोर
एक सरगम में ।
आश्वस्त हुआ, हैं प्रसन्न श्री इंद्रदेव,
 बरसेगा, घर आंगन में ।।

एक शाम हुई बदली घिर आई
तरूपात हिले, मेढ़क टर्राये ।
हल्का सा झोंका पुरवा लाई
कुछ बूंदे टपकीं, हम हर्षाये ।।

पर पल भर में आकाश साफ था 
हवा रुक गयी उमस बढ़ी ।
दिनकर दमके,बढ़ रहा ताप था 
फिर से जीवन की कठिन घड़ी ।।

अरे हो रहा ऐसा क्यों "श्री " 
सारी आशा निर्मूल हो गयी ।
जब बरस रहा है, नगर नगर में
प्यासी दिल्ली, क्या भूल होगयी ।।


 श्रीप्रकाश शुक्ल

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