Friday 29 October 2010

दीपावली


दीपावलि की धवल पंक्तियाँ, देती आयीं सदा संदेशा
     छाया मिटे क्लेश कुंठा की, जीवन सुखमय रहे हमेशा
          छोटा बड़ा नहीं कोई भी, बीज साम्य के दीपक बोते
               इसी लिए हर घर के दीपक, केवल मिटटी के ही होते


चाह यही यह दिव्य रश्मियाँ, हर मन को आलोड़ित करदें
     ये प्रकाश की मनहर किरणें, जीवन अंगना आलोकित कर दें
          रहे कामना यही ह्रदय में, मंगलमय हो हर जीवन
              प्रेम और सद्भाव बढायें, मिलकर सभी धनिक निर्धन

देश प्रेम की प्रवल भावना, भरी रहे सबके मन में
     उर्जा और शक्ति विकसित हो, हर तरुणाई के तन में
         पुण्य पर्व की ज्योति शिखाएं, अशुभ सोच संशोधित कर दें
             ये प्रकाश की मनहर किरणें, जीवन अंगना आलोकित कर दें



श्रीप्रकाश शुक्ल
शरद पूर्णिमा विभा

सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
      आज कलानिधि दिखे गगन में
          शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
           अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
       उलट दिया प्यासी धरती पर
          मदहोश हुए जन जन के मन,
           उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
       अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
          देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
           जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
      जब औषधेश सामीप्य निकटतम
          दुःख और व्याधि स्वतः विच्छेदित,
           कर अनन्य आशिष अनुपम

श्रीप्रकाश शुक्ल
हर दिवस यहाँ हो विजय पर्व

हर मन में पैठी यही कामना ,
        प्रति दिवस यहाँ हो विजय पर्व
              आये खुशहाली,तिमिर छटे,
                   हर कृतित्व पर करें गर्व
सम्पूर्ण विश्व ही मित्र बने ,
       देशों के परस्पर द्वेष मिटें
                सद्भाव पूर्ण सोचें समझें ,
                      आपस में मिल अंतर निपटें
दंभ , दर्प, अभिमान भरे हैं
       जो मानव के अंतर्मन में
             क्रोध, क्रूरता, दया हीनता,
                  पनप रही हैं जो जन जन में
ये आसुरीय अभिरुचियाँ ,
        उखाड़ फेंकें हम जड़ से
                 धू धू कर जल उठे बुराई,
                      पायें  विजय अहम् अर्पण से
होंसले हमारे हों बुलंद,
    विश्वास अडिग, अपनी क्षमता पर
        हर दिवस यहाँ हो विजय पर्व,
            जब जीत पा सकें हम कटुता पर

Saturday 23 October 2010

यह रचना एक सत्य घटना पर आधारित है  जो कि हिंदी दिवस के दिन याद आ जाती है .


साक्षात्कार

ऍम एस सी मैथ्स के
प्रविष्टि हेतु चयन होने थे,
गुप्ता जी दाखिल हुए
सामान्य कद, चेहरा भोला
साथ, पुस्तकों से भरा
खद्दर का झोला
प्रश्न पूछे जाते
गुप्ता जी उत्सुकता से
उचकते फिर बैठ जाते,
गुप्ता जी उत्तर जानते थे
अकुलाते,
भाषा की दुरुहता से,
बता नहीं पाते थे
संयम का बाँध
अकस्मात् टूट पड़ा
शब्दों में मुखरित यों
फूट पड़ा
" कछु सबाल हिन्दिउ में
पुछ्हो के अंग्रेजी ई झाड़त रेहयो”
विभागाध्यक्ष समझ गए
गुप्ता जी क्यों उलझ गए
तुरंत प्रश्न किया
एक त्रिभुज के तीन शीर्षों के
निर्देशांक हैं
शून्य शून्य, एक चार , छः चार
क्षेत्रफल बताईये
गुप्ता जी ने क्षणिक किया विचार
दोहराया एक बार
शून्य शून्य, एक चार , छः चार
बोल पड़े
आधार गुणें लम्ब बटे दो,
इतना सा ही प्रश्न बस
क्षेत्रफल हुआ, दस
और भी प्रश्न हुए अनेक
कठिन एक से एक
सभी उत्तर ज्ञान से भरे थे
सही सटीक खरे थे
चलते चलते मैं पूछ बैठा
पुस्तकें साथ लाने का
प्रयोजन क्या, .
उत्तर मिला
"इतना भी नहीं जानते हम क्या ?
आप सबाल पूछें
हम उत्तर दें
आप न मानें तो
पन्ना खोल के दिखायदें"
हम सब चकित थे
देखते रहे विस्मय से
समझ गए समय से
गुप्ता जी पूर्ण थे ज्ञान से
आत्म विश्वास से .
गाँधी के देश में


ईश की असीम कृपा, हमको जो जन्म दिया,
     सारे जगत को छोड़, गाँधी के देश में,
         स्वयं से मिलन का कितना सुगम पथ,
               मिलते यहाँ वो, दीन दुखियों के वेश में,

गाँधी का देश, एक ऐसा अनूठा देश,
    जीवन के मूल्य जहाँ पाते हम जन्म जात
         औरों के दुःख- दर्द, हमको रुलाते यहाँ,
              औरों की खुशिया बनें, अपनी सुखद सौगात

सत्य का समर्थन यहाँ, मन में स्फूर्ति भरे,
    सत्य की राह यहाँ, जीवन पथ प्रशस्त करे
        सत्य का ही आग्रह यहाँ, हमारी समूची शक्ति,
             हिंसा को तिलांजलि पूर्ण, सद्भाव आश्वस्त करे

अपराध ही रहा त्याज्य, हर समय हमारे यहाँ,
     अपराधी को भ्रमित मान, हम क्षम्य माने सदा
        व्यक्ति जो दिखाई दिया, पंक्ति अंत में खड़ा,
             चिंता का विषय, सबका, वही रहा सर्वदा

गाँधी के दर्शन से प्रकाशित हो, ज्योति जो ,
    जलती रही बेहिचक, उलटी हवाओं में
         मानवता का पाठ अब सिखाएगी जगत को वो,
             सद्भाव की सुरभि भर, सभी दिक दिशाओं में