Wednesday 13 April 2011

किन्तु अचानक लगा

वैसे तो जंतर मंतर पर, भीड़ सदा ही रहती है
अश्रु कणों से गीली मिटटी, नित नयी कहानी कहती है
किन्तु अचानक लगा, वहां जो पहुंचे थे अप्रैल पांच को
मांग रहे थे, भारत भू पर, जला न पाए आंच सांच को

जीवन की हर गति विधि में भरपूर समाया दुराचरण
भ्रष्टाचार,कुटिलता, चोरी, लगते मानव को, सफल आचरण
सत्ता के नायक, नेता दिखते , जैसे हों मूक, बधिर
अपनी खाली जेबें भरते, मौका ऐसा, कब आएगा फिर


इस बार मनीषों ने मिलकर, इक युक्ति नयी मन में ठानी
चाहे प्राण न्योंछावर हों ,पर हो न सकेगी मनमानी
जनता और सांसद मिलकर, लोकपाल बिल लायेंगे
भ्रष्ट, दुराचारी तुरंत ही कठिन ताड़ना पायेंगे

श्रीप्रकाश शुक्ल


क्रिकेट विश्व कप विजय दिवस



आँखों देखा वृतांत है ये, क्रिकेट विश्व कप विजय दिवस का
विश्व विजय के स्वप्न संजोये, कर्मठता से गढ़े सुयश का
दो अप्रैल, भूमि भारत की, नगर मुंबई क्रीड़ा स्थल
दो हज़ार ग्यारह की घटना, कौतुक भरा जहाँ था हर पल

श्रीलंका के क्रिकेट खिलाडी, उत्कृष्ट, विलक्षण कौशल सज्जित
पांच देश की टीमें जिनसे, अब तक रहीं विफल,अविजित
वनखेड़े के खेल प्रसर में, एक बृत्त में खड़े हुए
दे रहे चुनौती थे भारत को, स्वाभिमान से भरे हुए


उपलब्धियां हमारी भी अपूर्व, समतुल्य रहीं प्रतिमानों में
विश्व विजय की प्रवल लालसा, पलती थी अरमानों में
श्रीलंका के कुशल खिलाडी, खेल चुके थे पहली पारी
दो सतक चौहत्तर रन लेकर स्कोर खड़ा था समुचित भारी

धोनी, सहवाग, सचिन, रैना और गौतम गंभीर
युवराज, शांत श्री, नेहरा, भज्जी, मुनाफ पटेल जहीर
ये खेल बाँकुरे भारत भू के,प्रति उत्तर में उतर पड़े
मन में था संदेह न किंचित, यद्यपि लगते आंकड़े बड़े


रण भेरी बजी, पलक झपकी, लसिथ मलिंगा टूट पड़ा
जब तक सहवाग संभल पाते, गहरा संकट हो गया खडा
पहिला विकिट गिर गया था, गौतम आ कर डट गये क्रीज़ पर
संकट गहराया और घना, जब आउट सचिन अठारह पर

गौतम, विराट अब खेल रहे थे, सामंजस्य प्रचुर था दोनों में
रन की बारिश घनघोर हो रही, होंसला प्रखर था दोनों में
पर यह खुशियाँ बिखर गयीं, जब विराट का विकिट गिरा
तिमिर छागया आँखों सन्मुख, पगतल से खिंचती दिखी धरा


धोनी ने सोचा मन में, आ पहुंची घडी समीक्षा की
बढते दवाव के रहते, खेलोचित धैर्य परीक्षा की
बोले, यूवी तुम रुको अभी, मैं ही आगे बढ़ जाता हूँ
इन निर्भय ढीट गेंदबाजों को जम कर मजा चखाता हूँ


कप्तान और गौतम की जोड़ी, भायी थी सब के ही मन
कप्तान दे रहा महज साथ, गौतम वरसाता जाता रन
तीन रनों की दूरी थी, एक शतक बन जाने में
पर थोड़ी सी चूक होगयी, जाने में अनजाने में

द्रुति गति गेंद पिरेरा की, जब मध्य विकिट से आ टकराई
विकिट गिर गया गौतम का परिसर में मायूशी छाई
और अचानक लगा नियति कुछ क्रूर होगयी
जीती मंजिल कठिन, तनिक सी दूर होगयी

लक्ष्य रहा जब शेष चार का, और बच रहीं ग्यारह बाल
धोनी, यूवी के चहरों पर, दिखा रक्त लेता उबाल
अगली आती हुयी बाल पर, जड़ दिया एक धोनी ने छक्का
झूम उठे सब भारतवासी, विश्व देखता हक्का बक्का

सुशिष्ट भाव से हम खेले, सम्पूर्ण विश्व के सभी दलों से
खेल भावना रही बलवती, बल अजमाए अन्य बलों से
यह कीर्तिमान था कर्मठता का, लगन और उत्कृष्ट कर्म का
देश प्रेम का, खेल प्रेम का, सहिष्णुता, मानवीय धर्मं का


ये खेल कहानी भारत की एक नयी प्रेरणा लाएगी
विश्व बंधेगा एक सूत्र ,प्रेम ज्योति लहरायेगी



श्रीप्रकाश शुक्ल

Friday 1 April 2011

भाषा और कथानक दोनों, अब बिलकुल स्पष्ट हैं




पिछले चौसठ वर्ष बिताये, हमने ऊहापोह में
सह अस्तित्व, शांति से जी लें, रहे सदा इस टोह में
पर ओ मेरे, देश पडोसी, तुमने सदा ईर्ष्या पाली
अविश्वास की आग जला, राख करी अपनी ख़ुशहाली


जब जब हमने बांह पसारी, हाथ दोस्ती का माँगा
तब तब तुमने छुरा भोंक कर, पीठ हमारी को दागा
एक तुम्ही हो बिन कारण जो, बीज घृणा के निशदिन बोते
आतंरिक समस्यायों के भी हल, तुमको नहीं सुलभ होते


भाषा और कथानक दोनों, अब बिलकुल स्पष्ट हैं
प्रतिद्वंदिता भरी हृदयों में, भाव प्रेम के नष्ट हैं
पर हम शुभचिंतक, शुभेच्छु, सत सम्मति निश्छल देंगे
पंचशील के सिद्धांतों को कालांतर तक बल देंगे



श्रीप्रकाश शुक्ल
जब भी मन पर छाये उदासी




सांसारिक जीवन क्रम चलता, जैसे चलता रहा प्रकृति क्रम,
पल उछाह, मायूसी ले, आते जाते, ऋतु परिवर्तन सम
जब भी चयनित मंतव्य हमारे, वांछित परिणाम नहीं लाते
होते हम, हतप्रभ, हतोत्साह, दुःख की दरिया में बह जाते


उचित यही, इन बिषम क्षणों में, रुकें, वस्तुस्थिति आंकें
जब भी मन में छाये उदासी , अपने अंतस में झाकें
पा एकाकी, स्वजन मित्र बिन, ये बादल छा जाते हैं
मन की शांति, धैर्य, प्रज्ञा सब साथ उड़ा ले जाते हैं


जब भी मन में छाये उदासी, समझो चित्त हुआ अस्थिर
जब पाओ नैराश्य विफलता, मानों विश्वास हटा निज पर
अनवरत करो निज नियत कार्य, सबल सोच परिप्रेक्ष्य पले
प्रतिकूल परस्थितियों में भी, ध्यान ध्येय से नहीं टले


 
श्रीप्रकाश शुक्ल