आभार
सीधे साधे भाव हृदय के महिमा मंडित हो जाते हैंं ।
उन्हें एक क्षण पढ लेने की अभिलाषा मन मेंं भर कर,
हम काव्यविधा से अनजाने, शब्दहीन, पीछे आते हैं
किस तरह करूं आभार प्रकट, भाव हीन, शब्दों में सामर्थ नहीं,
जिस तरह आपने कविता के प्रति,अभिरुच को पनपाया है
ये तो मां शारद की कृपा रही जो बिन प्रयास सहजता से,
कवि विशिष्ट श्री राका को हम सब ने पढ पाया है।
सादर
श्री