सुधियाँ अतीत कीं
खुली आज स्मृति मंजूषा, बिखर गए कुछ मीठे पल
कुलबुला उठीं सुधियाँ अतीत की, जाग उठे भूले बिसरे कल
कितना अद्भुत ? स्मृति मणियाँ स्वतः सूत्र बिंध जातीं हैं
मणि मुक्ता की लड़ियों जैसी, मनस पटल पर छा जातीं हैं
इन लड़ियों में क्रमबद्ध गुथीं, जीवन की अनगिन सौगातें
नटखट वचपन, अल्हड यौवन, प्रिय की खट्टी मीठी बातें
मूल्य हनन, अस्मिता दहन, जीवन की विविध विषमताएं
असमंजस के पल, संकल्प अटल, सुलझी, उलझी अटपट राहें
जीवन के भोगे, ये पल, बहुधा, हम ओझल ही पाते हैं
पर कतिपय परिदृश्य, संदेशे, ढूंढ इन्हें सन्मुख लाते हैं
यादों के आलम्बन ये, अगुआ बन, जीवन दिकदर्शित करते हैं
उलझन सुलझा, अटकाव हटा, जीवन में खुशियाँ भरते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल