Tuesday 23 April 2013


सब समय तुम्ही ले लेती हो

सब समय तुम्ही ले लेती हो ,
कैसे संभव हो कोई काम 

प्राची में बन तुम अरुण किरण ,
मेरी खिडकी के द्वार खोल ,
छूती जब आ मेरे कपोल ,
मैं सेज छोड़ उठ जाता हूँ 
ले प्राण तुम्हारा मधुर नाम 
कैसे संभव हो कोई काम 

अध्ययन को पुस्तक खोलूँ, 
तो शब्द शब्द धुंधले होते, 
ना जाने क्यों विकल नयन, 
अपनी चेतन प्रज्ञा खोते ,
बस प्रष्ट प्रष्ट पर दिखती हो  
गुंजन करती स्वर ललाम  
कैसे संभव हो कोई काम  

ध्यान अर्थ जब बैठूं मैं ,
तुम सन्मुख आ जाती हो 
नभ में छिटकी बदली सी, 
बस अंतस में छा जाती हो 
मन्त्र मुग्ध मैं खो जाता हूँ 
चित्र सजा मोहक अभिराम 
कैसे संभव हो कोई काम 

सब समय तुम्ही ले लेती हो 
कैसे संभव हो कोई काम 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

चुल्लू को खोज रहा हूँ 

अंजलि भर जल अभिमंत्रित कर अभिशाप दिया दुर्वाषा ने 
   जिसमें खोयी तू शकुंतले, जा, भुला दिया तुझको उसने  
    परिणाम हुआ क्या एक अबोध शिशु पिता प्रेम से वंचित था 
           खोज रहा हूँ उस चुल्लू को जिसमें कठोर कृत संचित था 

जो धनुष राम ने तोडा था, रावण हिला नहीं पाया था 
   चुल्लू भर जल में डूब मरूं, ये ख्याल ह्रदय में आया था 
      अंगद का पैर धरा पर था, रावण प्रयास कर उठा रहा था 
           उस चुल्लू को खोज रहा हूँ, जिसमें डुबकी लगा रहा था 


धर्मज्ञ राम ने वृक्ष ओट ले, बाली का संहार किया 
   खोज रहा हूँ उस चुल्लू को, जिसमें अधर्म का घूँट पिया 
        खड़ा शिखंडी के पीछे अर्जुन छलता, गंगासुत शरीर 
             धिक्कार रहा था पौरुष को, उसको अपना ही ज़मीर  

 भूमि ग्रस्त रथ का पहिया खींच रहा था कर्ण व्यस्त 
     मानवी पूर्णता के प्रतीक, आदेश दे रहे करो ध्वस्त 
       यद्द्यपि भारत के वीरों में गरिमा का रहा बोलवाला 
           पर कुछ कृत्य कलुष भी हैं, जिनसे इतिवृत्त हुआ काला  
 
श्रीप्रकाश शुक्ल 

केसरिया लाल पीला, नीला हरा गुलाबी.

आया होली का त्यौहार,घर घर गूँज उठी ये बोली 

छोडो छुटपुट खटपट भैया जो हो ली  सो हो ली 


सभी रंग के संग हमारे, बढ़कर एक एक से प्यारे

आओ मिलकर नाचें गायें रंग रास के बन हमजोली 


नीला हरा गुलाबी.पीला, रंग भर अंग केसरिया लाल

प्रकृति सुंदरी नाच रही है,नचें साथ पशु पंछी टोली 
   

तनकर खड़े हुए गेहूं जौ,रोज सोचते हैं मन ही मन

मटर सयानी मदमाती मन, पाऊँ कैसे इसकी डोली 


हर मानव का धर्म यही है जियें प्यार से अरु जीने दें

जीने की इक राह दिखाता,हंसी ख़ुशी का ढंग है होली  


''होली की हार्दिक शुभकामनाएं''   

श्रीप्रकाश शुक्ल 

केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी 

केसरिया  लाल   पीला , नीला  हरा   गुलाबी 
पहिन पजामा कुरता ढीला घर से चला शराबी 

बात पते की कहता जो वो, हम सब को बतलाते हैं 
पीने वाले पीकर के, मदहोशी में खो जाते हैं 

जो मदहोशी में खो जाते हैं, वो जल्दी  सो जाते हैं 
और सोनेवाले जीव कोई भी ,पाप नहीं कर पाते हैं 

पाप  नहीं  करते  हैं जो, वो सीधे स्वर्ग चले जाते हैं 
इसीलिए पी के क्यों  न हम,  स्वर्ग द्वार खुलवाते हैं 

पूछा है ये  सब, ऊपरवाले से,  लिखकर पत्र जबाबी 
ये राज़ उसी ने बतलाया है, कुछ भी नहीं किताबी 

''होली की हार्दिक शुभकामनाएं''

श्रीप्रकाश शुक्ल 

कहानी कभी फिर सुनाना

कालिमा से पुते चित्र, हैं साथ इतने, संभव नहीं है इन्हें भूल जाना  
 कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  


नियति के थपेड़ों से होकर के आहत, सुध खो चुके हैं विहग सब चमन के  
प्रीति की डोर इतनी लचर हो गयी है, बिखर से गए सारे अनुबंध मन के  
न हृदयों की थाली में सजता वो धागा, जो बांधे रहा है युगों से सभी को 
जन जन के मन में भरे प्रेम रस जो, पुरवा मलय की न लाती सुरभि वो 

विगत वर्ष पैंसठ से सुनते रहे हम, बदलेगा मौसम बनेगा सुहाना  
कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  

वादे किये थे मिटेगी विषमता, हट सकेगा सदा के लिए दुःख का रोदन  
मेहनत की रोटी सभी खा सकेंगे, न छीनेगा कोई किसी का भी भोजन  
भूखी चितवन खड़ी देख के पार्श्व में, चीर देता है मन एक अनजाना भय  
परियोजनायें सकल रेत की भीत सी, कोई युक्ति न सूझे जो बदले समय 

जब भरा हो दिल में धुंआ द्वेष गहरा, दुष्कर है तब प्रीति के गीत गाना    
कोई नहीं अब भरोसा करेगा, ये झूठी कहानी कभी फिर सुनाना  

श्रीप्रकाश शुक्ल 



होली खेलत रे नंद लाल

होली खेलत रे नंद लाल जमुन  तट होली खेलत रे 
बरसाने में पहुँच गए सब जोर जोर ग्वालिन टेरत रे 

सांठ गाँठ सखियन में है रहि पकरों आज नन्द को छोरो 
लाल गुलाल गालन पै मलहों  करिहों  कारे तै  गोरो 
कान्हा चीनत सगरी चतुराई, कोई नाहि बच है अज कोरो 
दधि मट किन् में रंग भरावत साथ में कीचर घोरो 

ग्वालवाल समुझाय दये हैं लपक झपक सब घेरत रे    
होली खेलत रे नंद लाल जमुन तट होली खेलत रे 

श्रीप्रकाश शुक्ल