Tuesday 23 April 2013


चुल्लू को खोज रहा हूँ 

अंजलि भर जल अभिमंत्रित कर अभिशाप दिया दुर्वाषा ने 
   जिसमें खोयी तू शकुंतले, जा, भुला दिया तुझको उसने  
    परिणाम हुआ क्या एक अबोध शिशु पिता प्रेम से वंचित था 
           खोज रहा हूँ उस चुल्लू को जिसमें कठोर कृत संचित था 

जो धनुष राम ने तोडा था, रावण हिला नहीं पाया था 
   चुल्लू भर जल में डूब मरूं, ये ख्याल ह्रदय में आया था 
      अंगद का पैर धरा पर था, रावण प्रयास कर उठा रहा था 
           उस चुल्लू को खोज रहा हूँ, जिसमें डुबकी लगा रहा था 


धर्मज्ञ राम ने वृक्ष ओट ले, बाली का संहार किया 
   खोज रहा हूँ उस चुल्लू को, जिसमें अधर्म का घूँट पिया 
        खड़ा शिखंडी के पीछे अर्जुन छलता, गंगासुत शरीर 
             धिक्कार रहा था पौरुष को, उसको अपना ही ज़मीर  

 भूमि ग्रस्त रथ का पहिया खींच रहा था कर्ण व्यस्त 
     मानवी पूर्णता के प्रतीक, आदेश दे रहे करो ध्वस्त 
       यद्द्यपि भारत के वीरों में गरिमा का रहा बोलवाला 
           पर कुछ कृत्य कलुष भी हैं, जिनसे इतिवृत्त हुआ काला  
 
श्रीप्रकाश शुक्ल 

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