Monday 25 July 2016

तीर लगता आज सूना

तीर लगता आज सूना, नाविक सभी अस्फुट भ्रमित 
किस ओर पंहुचेगी ये नौका देश की  स्थिति अनिश्चित 
सुमधुर फलों की कामना क्या 
पूरित कभी हो पायेगी । 

नीतियाँ  उपयुक्त हैं  पर अमल उनपर हो न पाया  
अंकुरित होने से पहले झेलतीं प्रालेय साया 
एकता की भावना जन जन में क्या 
कोशिश बिना उग पायेगी । 

छल कपट का साथ लेकर चाहते सब  कामयाबी 
अबोध का धन लूटने में  दिखती नहीं कोई खराबी 
ये आज के  युग की सचाई 
क्या कभी मिट पायेगी । 

हाँ ये संभव है अगर हम निरपेक्ष हो जग को निहारें 
आसुरी वृतियाँ  कुचल दैवीय वृत्तियों को निखारें 
हों स्वार्थ तज पर हित समर्पित 
तो साधना बेशक असर दिखलाएगी ।   

श्रीप्रकाश शुक्ल