तीर लगता आज सूना
तीर लगता आज सूना, नाविक सभी अस्फुट भ्रमित
किस ओर पंहुचेगी ये नौका देश की स्थिति अनिश्चित
सुमधुर फलों की कामना क्या
पूरित कभी हो पायेगी ।
नीतियाँ उपयुक्त हैं पर अमल उनपर हो न पाया
हाँ ये संभव है अगर हम निरपेक्ष हो जग को निहारें
अंकुरित होने से पहले झेलतीं प्रालेय साया
एकता की भावना जन जन में क्या
कोशिश बिना उग पायेगी ।
छल कपट का साथ लेकर चाहते सब कामयाबी
अबोध का धन लूटने में दिखती नहीं कोई खराबी
ये आज के युग की सचाई
क्या कभी मिट पायेगी ।
आसुरी वृतियाँ कुचल दैवीय वृत्तियों को निखारें
हों स्वार्थ तज पर हित समर्पित
तो साधना बेशक असर दिखलाएगी ।
श्रीप्रकाश शुक्ल