Thursday 30 September 2010

अक्टूवर चार दो हज़ार सात

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साईं आशीषों की हुयी वरसात


महकी राहुल अमीशा की क्यारी
अंकुरित हुयी एक कली प्यारी











बड़ी हुयी फूल बनी
बातों की बहुत धनी



सुमति  की बातें करे
नाना जी का मन हरे
दादा दादी झूम उठे
मन मयूर नाच उठे

सब से यह बात सुनी
बिटिया है बहुत गुणी


आज हुए तीन बर्ष
आशीष दें हम सहर्ष


सुखी रहे ,फूले फले 
काम करे, भले भले 


ढेर से प्यार सहित
दादा,दादी, बुआ  




Wednesday 29 September 2010

समय का फेर

युग युग से मिलता बोध यही
      काल चक्र है, काल जयी
            इसके निर्देशों पर नाचे
                 ऋषि, मुनि, दैत्य, देव सब ही

समय चक्र चल रहा अनवरत
      प्रकृति और मानव गतिविधि में
           सुख दुःख आते जाते क्रमवत
                 बदले जैसे मौसम हर ऋतु में

समझ समय का फेर इन्हें
     जो सामंजस्य बिठा पाता
           समभाव युक्त, मुक्त चिंता
                 से, जीवन सुखद बिता पाता

सब से सुलभ यही पथ है
     कर्ता न कभी खुद को मानो
           नैसर्गिक है जो भी घटता
                 प्रकृति रच रही है सब, जानो

Tuesday 14 September 2010

झुककर ही हम आगे बढ़ते


कंटकाकीर्ण, जीवन का पथ
उत्तरदायित्वों से लथपथ
आगे बढ़ने की सतत होड़
अवरोधन अगणित अतोड़
थक जाते जलन, द्रोह लड़ते
झुककर ही हमआगे बढ़ते


टकराना कोई निदान नहीं
मंत्रणा व्यर्थ, जब ज्ञान नहीं
झूटी स्तुति सम्मान नहीं
अहम् ओढ़ना, शान नहीं
मृदुभाषी सब का मन हरते
झुक कर ही हम आगे बढ़ते

झुक कर धन्वा, लक्ष्य साधता
झुक मृग शावक, नदी लांघता
झुक कर खनिक, ढूंढता मोती
विजय प्रेम की बल पर होती
झुक झुक कर ही चोटी चढ़ते
झुक कर ही हम आगे बढ़ते


जग का मालिक, महा सबल
संचालित जिस से हर पल
कृपा प्रभु की जो जो पाता
धैर्य नम्रता से सज जाता
झुककर विनय प्रभू की करते
झुककर ही हम आगे बढ़ते


श्रीप्रकाश शुक्ल
फार्मिंगटन हिल्स (यू एस ए )
१२ सितम्बर २०१०