Tuesday 12 February 2013

तेरी वीणा की झंकारें 

कब से नहीं सुनी  माँ , तेरी  वीणा की झनकारें 
भक्ति भाव से पूरित दृग माँ,इकटक तुझे निहारें

बचपन में निशदिन ही  तू माँ, साथ हमारे रहती थी
सा माँ पातु  सरस्वति ,जिभ्या रोज सकारे कहती थी
अध्ययन के पहले पहले, गुणगान  तुम्हारा करते थे
सद विचार, शुभ संस्कार  नित चित वृति में भरते थे

कितनी करुणा रहित हुयी माँ, सुनती नहीं पुकारें
मन  व्याकुल  सुनने  को  तेरी वीणा की झनकारें

हम बच्चे हैं अज्ञानी हैं , भिक्षुक ममतामयी  दृष्टि के
युगों युगों  से हम आकांक्षी विद्या ज्ञान कला वृष्टि के  
शिशु बालक अरु प्रौढ़ तरुण हम सब ही तेरे उपासक हैं
तेरी वीणा के मधुरिम स्वर अज्ञान तिमिर के नाशक हैं

माँ  तेरे पद रज के कण, अनगिन शठ, मूढ़ उबारें
हैं  मृदु  शान्ति प्रदायिनि, तेरी  वीणा की झनकारें


श्रीप्रकाश शुक्ल 
तुमसे कितना प्यार मुझे है 

उन्मत्त मधुप झुंझला कर बोला कलिके,तू कितनी निर्मोही
मैं घूम घूम कर  हुआ क्लांत, 
तू पलकें  ढांप चैन  से सोयी
किस तरह  बताऊँ तुझको पगली,तुमसे कितना प्यार मुझे है
सारे दिन मैं  रस निमग्न  था पर  ना मन की  प्यास बुझे है

मृदुहास अधर धर कलिका ने यों  कहा मधुप से ओ  दीवाने
स्पर्श जनित सुख, दुःख के कारण ये तो सारी दुनियां  जाने
मैं समझ रही हूँ समय माघ का रतिवर का सबसे प्रिय पल है
काम वासना से उर्जस्वित  थल जल चर, हर कोई विकल है

 आक्रोश प्रेम अभिव्यक्ति का अत्यंत सरल बचकाना ढंग है
 मेरे  जीवन का औचित्य, मात्र  तेरा  ही  प्यार, तेरा संग है 

 अरमान नहीं आ कर के घेरे, मुझे कोई   मधुपों की  टोली 
 मेरा तू सर्वस्व, तेरी चाहत जीवन, साँसे  मेरी तेरी बोली  

 केवल आभास तेरे होने का , मेरे जीवन का सार रहा  
तेरी उच्छ्वासों को छू कर , मौसम का सारा भार सहा 
मैं पीती रहती हूँ जो गा कर, तू इस उपवन में भरता है 
फिर भी कितना प्यार तुझे है, सुनने को दिल करता है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

मैं प्रतीक्षा कर रहीं हूँ 

बातें हुयी थी ढेर सारी,
समय असमय फोन पर 
विषय भी बदले अनकों 
बुक बदल पन्ने पलटकर 
हर बार ही तुमको,
मेरी आवाज में माधुर्य सूझा 
थे नहीं थकते कभी, 
कहते न ऐसा सुना  दूजा 

चित्र भी मेरा सभी
परिबार के मन भा रहा था 
सम्बन्ध बिलकुल ठीक है 
हर कोई बतला रहा था 
फिर पत्र इक पहुंचा 
कि जिसमें जिक्र था 
कुछ जरा सा  ही ,
रिंग तो हीरे की होगी,
कार होगी आधुनिकतम 
रंग हल्का हरा सा  । 
पायी खबर दो माह
पहले विवाह तिथि के, 
कैश भी तो  है जरूरी, 
क्या  करें सम्मान 
रखना  बन गयी है 
हमारी ,एक मजबूरी 
जब से पिता श्री ने सादर, 
असमर्थता बताई  है 
मैं प्रतीक्षा कर रही हूँ 
न कोई रिंग, न कोई 
SMS ही आयी है  

श्रीप्रकाश शुक्ल 

 मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ
  यादेँ मधुर बीते दिनों की, आज करतीं हैं विकल
   मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ काश आयें लौट वो पल

  पल वो जब हमने सुनी थी, प्रीति से अभिषिक्त लोरी
    आँचल 
हिंडोला सा रहा , बांधे  रही मृदुहास डोरी  
  और ममतामय नियति, देती रही सुख की थपकियाँ
   प्यार दुलराता रहा, पर था कठिन लेना झपकियाँ

   संघर्ष रत थी  साधना,  थी 
जिंदगी सीधी सरल  
   मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ, काश आयें लौट वो पल 

   फिर अचानक एक दिन,  समय की जलधार छूटी  
    पल वो सुखमय बह गए, आशा समूची साथ टूटी 
     स्वप्न बन कर साथ अब रहतीं हैं सौगातें सभी 
    संभव नहीं  गुज़रे हुए  क्षण लौट कर आयें कभी 

    आस है गूंजे  गगन और मेघ बरसायें  सुफल
    मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ काश आयें लौट वो पल  


 श्रीप्रकाश शुक्ल 
नया आज इतिहास  लिखें हम 

मनु युग से जो भी वृतांत लिख, हमने अपने ग्रन्थ संवारे 
कल युग के इस दुराचरण में, आज पड़े  बेबस  बेचारे 
राक्षसी  प्रकृति कैसी भी थी, कुछ तो  मर्यादा  रक्षित थी 
चौदस बरस  अकेले में  भी, अबला अस्मिता सुरक्षित थी 

इंसानों के घर जन्म लिया, हैवान नहीं इंसान दिखें हम 
पूर्व वृत्त निष्फल दिखते, नया आज इतिहास लिखें हम 

मानवता का कोष लुट रहा, हिंसा करती अघ अनाचार 
अन्याय, आधियाँ उठा रहा  है  भीषण  दारुण  धुआंधार 
लिपटी बिषधर की फुफकारों में दिखती है हर रजत निशा 
असहाय, मूक, अंगार उगलती लगती है  हर एक  दिशा 

क्यों उन्माद लूटता निष्ठा, बीभत्स बने क्यों, निरखें हम 
पूर्व वृत्त निष्फल दिखते नया आज इतिहास लिखें हम 

ये संकल्प आज करते  हैं,  लायें करुणा का सुधा कोष 
विश्वास अचल दें संत्रस्तों को, अभयदान का हो उद्घोष 
पौरुष, जो बैठा हारा हताश, उठ फिर से हो जाजुल्यमान 
भरे सदाशयता मन में, हो मानवता का मांगल विहान 

क्या विकल्प है आज अपेक्षित, कदम कदम पर परखें हम 
पूर्व वृत्त निष्फल दिखते, नया आज इतिहास लिखें हम 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

खड़ा मोड़ पर आकर फिर  इक नया वर्ष है

खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है
ओ आगंतुक क्षमा करो, अगवान न मैं कर पाऊँगा

है ह्रदय क्षुब्द्ध आहत आतम,  चेतना हमारी क्षार क्षार है
चन्द दरिंदों का बहशीपन, मातृशक्ति पर खुला बार है
जिस माँ की पग धूल धार सिर, कूदे हम रण भूमि मध्य
उसे आज अपमानित करने, कैसे कोई दिखता सनद्ध

लज्जित है कण कण भू का, अपमान न ये सह पाऊँगा
ओ आगंतुक क्षमा करो अगवान न मैं कर पाऊँगा

केवल विकल्प है शेष एक, हर तरुण भीष्म संकल्प करे 
नारी न कभी अवमानित हो प्राणाहुति  देनी पड़े भले
हर नारी को भी ममता तज  रणचंडी रूप दिखाना होगा 

दुष्टों के संहार हेतु अब  युद्धभूमि में आना होगा 

कल्पनातीत घटनाओं को संभव नहीं भूल पाऊंगा 
ओ आगंतुक क्षमा करो अगवान न मैं कर पाऊँगा

श्रीप्रकाश शुक्ल 
खडा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है 

वर्ष एक पहले आये थे, इसी तरह मंगलमय क्षण बन 
नयी उमंगें नयी आस भर, हर्षित थे सब के अंतर्मन 
विश्वास तोड़ जनता का तुमने, पैरों तले कुचल डाला 
होंसला बढ़ाया चोरों का, घर घर दिखा दाल में काला 

शंकाओ से है पूरित मन, निष्प्राण पड़ा जीवन प्रकर्ष है
 बांह पसारे खडा मोड़ पर आकर फिर इक नया वर्ष है 

 आशायें रक्खें क्या कल से, क्या हालात बदल पायेंगे
 कीड़े जो भरे दरिंदों के, क्या संभव कभी निकल पायेंगे
 क्षार क्षार सब मूल्य हुए हैं ,तार तार सपनों की चादर 
 मन उद्विग्न, भूल पथ बैठा मरुथल में जैसे यायावर 

 आगंतुक ! दु ख भरा ह्रदय ये, लेश मात्र भी नहीं हर्ष है 
 बांह पसारे खडा मोड़ पर, आकर फिर इक नया वर्ष है 

असमंजस में  डूब रहा मन  सोच रहा है क्या निदान है 
कसक रहे अनुताप ह्र्दय में  बाहर  झूठा सा गुमान है 
आज तूलिका कहती है, मत लिखो गीत सम्मोहन के 
लिखो आज ऊधल की गाथा,शौर्य कृत्य वीरोचित मन के 

आतंकी परिदृश्य भयावह, देता बस एक ही विमर्श हैं 
बढ़कर आगे संघर्ष करो , खड़ा द्वार पर नया वर्ष है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया बर्ष है

बाँह पसारे , खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया बर्ष है 
अपलक नयन युगल, पथ देखें,भरा दृष्टि अटपटा हर्ष है

आँखों के सन्मुख आ तिरते, जब परिदृश्य गए सालों के   
नैतिकता के अधम पतन के, निन्दनीय घोटालों के 
फसीं  दरिंदों के चंगुल में ,लडती  रहीं दामिनी  दम भर  
आश्वस्त करें कैसे  खुद को, तब आने वाले कल पर 

धुल धूसरित हैं सब सपने, थका  हुआ जीवनोत्कर्ष है  
बाँह पसारे , खड़ा मोड़ पर आकर फिर इक नया बर्ष है

सही दिशा जीवन की है पर, आशावान सदा ही रहना 
गत भूलों में कर सुधार,सुखद कल्पना सरि में बहना  
जन समूह में शक्ति बहुत है, नव निदान मिल जायेंगे  
हत उत्साह पार्थ जो बैठे, कर्म भूमि में फिर  आयेंगे  

बाहों में बल, तेशा हाथों में, चट्टानी भू, हाँ  संघर्ष है 
आओ बढ़ आलिंगन कर लें, खड़ा मोड़ पर नया बर्ष है 

तेशा :  कुदाली, crow bar 
श्रीप्रकाश शुक्ल