नव चेतना दे नया स्वर
आते हुए नव वर्ष की हर भोर हो इतनी प्रखरझुलसा दे जो संकीर्णता, नव चेतना दे नया स्वर
देश की उज्जवल धरा पर, आज फिरआया कुहासा
विश्व असमंजस में है, कि ये ढा न दे कोई कहर
देश में जनतंत्र की आवाज़, नियमावलि बनाती
भूल हो जाए अगर तो, मिलबैठ करते बेअसर
हैं नीतियाँ स्थिर सदा से ,सौहाद्र और समभाव पर
खुलकर यहाँ पर बात होती प्रतिवाद में कोई न डर
कुछ विकृत सी मानसिकता स्वार्थ की चादर लपेटे
तरुणाई को भटका रही, क़ानून का अपमान कर
सागर से वृहत जनतंत्र में सामान्य ऐसी हलचलें,
शीघ्र होगा "श्री "निवारण गतिशील होगी हर डगर
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment