प्यार का पट खोलता है
मुंंडेर पर बैठा कबूतर का जोड़ा गुटरगूं गुट बोलता है ।
हिय में जगाता टीस सी, प्यार का पट खोलता है।।
नभ से छिटककर चांदनी आंगन में आ जब पसरती है ।
याद प्रीतम की दिलाती, बिरहिन का तन मन डोलता है ।
सर मेंं थिरकतींं मछलियां लहरों के संग जब खेलतीं हैं
परिदृश्य सुधि में ला विगत पल, प्यार का रस घोलता है
अतिशय मधुर है जिन्दगी मेंं, प्यार के पट खोल जीना,
ऐसे जीवन को जगत, स्वर्ग सम ही तोलता है ।।
जो हृदय तज द्वेश ईर्ष्या अहं "श्री". सौहार्द का अनुसरण करता,
वो साफ सुथरे तन में रह कर प्यार का पट खोलता है ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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