Sunday, 5 January 2020

जाल सन्नाटे निरन्तर बुन रहे हैं

आज अपनी गफलतों पर, हम सभी  सर धुन रहे हैं 
क्या पता था, जाल सन्नाटे निरन्तर बुन रहे हैं ।।

असहिष्णुता का रोग जग में, आज अपने चरम पर है
और हम इसको भुला वर्चस्व का पथ चुन रहे हैं।।

सम्पत्ति, सुख साधन अकेले, शान्ति दे सकते नहीं
सद्भाव, मीठे बोल और सदव्यवहार ही सदगुन रहे हैं ।।

देश के कर्मठ तरुण,अब प्रतिभा परीक्षण में जुटे हैं
परिणाम होंगे दूरगामी. मनीषियों से  सुन रहे हैं ।।

विज्ञान से सम्भव है, बस में शक्तियां दैवीय हों  "श्री"
पर उनके गलत उपयोग से परिणाम दुख दारुन रहे हैं ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल

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