देखकर हैरान होते
जिस तरह फैला हुआ है आज सारे जग मेंं गम,
देखकर हैरान होते, डगमगाता हर कदम ।।
आपदाएं प्राकृतिक और कुछ खुद की रचीं
फैला रहीं सुरसा सा मुंह, ह़ोतीं नहीं हरगिज़ भी कम ।
सारे. मनीषी जानते हैं ,दुख का कारण.है क्या ,
तीन तापों के जनक और मुख्यतःकारण, हैं हम।।
गल्तियां करते हैंं हम, अज्ञानवस या हो अचेतन
पालते इच्छाएं अनगिन.कम न होता जिनका क्रम
आनन्द से गुजरे ये जीवन, है मात्र साधन एक ही " श्री""
सच में जियो ,छोड दो, हो धन पै निर्भर सुख से जीने का भ्रम
श्रीप्रकाश शुक्ल
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