एक उजली शाम के भटकाव में
एक उजली शाम के भटकाव मेंं,
आज तरुणाई भ्रमित है
सूझे न कोई पथ दिशा बिन,
पा हार नित, मन व्यथित है
चल रहे हैं आज टेढ़ी राह पर
जिज्ञासु विलक्षण विषय प्रति
परिणाम क्या क्या गुल खिलाएगा
नहीं तिल भर, विदित है
देश के चिंतक मनीषी दे रहे सन्देश भ्रामक,
क्यों, किसलिए, किस लोभ से
क्या क्या लगा है दांव पर, अनविज्ञ
संपूर्ण जन मानस चकित है
अस्मिता है देश की सर्वोच्च सम्पत्ति
पूज्य है जिस देश में, वो ही आदर योग्य है
ऐसे गर्वित देश में उद्योग संस्कृति और
सुरक्षा रही होती सदा ही फलित है
कर रहा है देश आव्हान तरुण का
त्याग दो अलगाव की सारी विधाएं
एक जुट हो देश के उत्थान में
सम्पूर्ण शक्ति झोंक देना ही सर्वथा उचित है
श्रीप्रकाश शुक्ल
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