बूँद भर जल बन गया
एक बूंद भर जल बन गया जीवन दाता भारत में ।।
पृथ्वी पर जल का स्रोत कहाँ सोचा न समग्रता से हमने ।
नदी सरोवर सागर समझे, जो जल के धाता भारत में ।।
जल प्रदायिनी तो वर्षा है, भरती पृथ्वी का आँचल जो ।
धरती की कोख पड़ी सूखी, हुआ
अधिक दोहन भारत में ।।
नभ को स्नेह बड़ा धरती से यद्यपि दूरी, पर चाहत पूरी ।
प्यासी धरती की हर एक तपन को आकाश बुझाता भारत में ।।
तपती धरती बोली नभ से, प्रिय आओ, देह समा जाओ ।
नभ बोला मात्र देह ही क्यों देही भी तृप्त करो भारत में ।
मैं तो रहा प्रतिपल तत्पर करने को समर्पण पूर्ण रूप ।
पर भौतिकता के लालच में सम्पर्क बिगाड़े भारत में ।।
कुए नदी पाटे मानव ने बृक्षों को काट सपाट किया ।
अब कौन संदेशा प्रिये तुम्हारा,पंहुचाये हम तक भारत में ।।
अमृत सम जल का संरक्षण,संचय, हैं दोनों ही मूल्यवान ।
मितव्ययता से भोग करें, समभागी बन बांटें भारत में ।।
वातावरण संतुलन एवं वर्षा जल का संग्रह "श्री"
जल आपूर्ति दिशा में होंगे, अति उपयोगी भारत में ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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