प्रश्न छेड़े ही नहीं
अविश्वस्त पड़ोसी की हरकत का नहीं सही संज्ञान लिया
कठिन प्रश्न छेड़े ही नहीं, जो कहा, उसे बस मान लिया
कितने सारे प्रयत्न कर छोड़े, किसी तरह भी बात बने
पर वैमनश्यता इतनी गहरी छुप छल को अंजाम दिया
दोनों ही पडोसी खूब जानते, हित मिलकर रहने में है
कारण रहा कौन सा जो लड़ झगड़ अभी तक साथ जिया
क्या रीति नीति हो ऐसी जिससे, सद्भाव प्यार आपस में हो
क्या भूल रह गयी उसमें अब तक जो हमने व्यवहार किया
है जो सुंदर भविष्य की चाहत ,तो शाश्वत सत्य यही है "श्री"
मिला उसे जिस देश जाति ने, शठता सँकरापन त्याग दिया
श्रीप्रकाश शुक्ल
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