Monday 5 February 2018

जीवन के पतझड़ में 

जीवन के पतझड़ में अतीत के कोमल पल सुधि में आते हैं 
नयनवारि खुशियों के तत्क्षण, आँखों से  टूट लुढ़क जाते हैं 

कल्पना विवशता मय जीवन की  तन्हाई सूनापन भरती है   
धुंधले चित्र विगत के सन्मुख आ अधबुझी राख धधका जाते हैं 

मौषम के पतझड़ में  तो केवल, तन का आवरण बदलता है 
पर शनै शनै नव किसलय उग हर तरु को पुनः सजाते हैं 

पतझड़ भी इक अहम चरण है मानव जीवन के मौषम का  
जहाँ शक्तियाँ,साथी, रिश्ते, पीले पत्ते सम मुरझा जाते हैं

एक यही माकूल सुअवसर  चिंतन और मनन करने का , 
जीवन की गति विधियों का जब सही आंकलन कर पाते हैं ।

ऊहापोह भरे जीवन में, हमने दुःख सुख सब से बांटा "श्री "
अब जब शाश्वत सत्य सामने, क्यों सार्थक शिष्ट न जी पाते हैं 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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