हम तुम गए मिल
जीवन की लम्बी डगर मध्य कुल क्षण ऐसे भी आते हैँ
भर देते जो अपार खुशियाँ इक नया दौर रच जाते हैँ
कभी कभी एकाकीपन मन इतना विह्वल कर जाता है
जीवन लगता अतीव दूभर दिन मुशकिल से कट पाते हैँ
जीवन की आपाधापी मेँ यह सच है समय नहीं मिलता
पर बीते हुए दिनों के किस्से सुधियों में आ छा जाते हैं
ऐसा ही एक मधुर क्षण था जब थे, हम तुम गये मिल
वो फेरे सात अग्नि के चंहुदिश, मन प्रमुदित कर जाते हैं.
मिलन हमारा नीर क्षीर सा कितने अधीर थे हम मिलने को
प्रयास तुम्हारे, वर्ण मेरा लेने के "श्री "मन से निकल नहीं पाते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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