पीपल की छांह नहीं,
पीपल की छांह नहीं, बैठन को ठांह नही, अमवा की डालों की लुप्त है कतार
चिडियों की चहक नहीं, फूलों की महक नहीं,सूखे पडे तालों की लुप्त है बहार
प्रिय की याद आयी, मदन पल कुरेद लायी, नयनों से बरबस झरत है अश्रु धार
पिय बिन दिन कटे नहीं, प्यास मन की मिटे नहीं, जीवन डगर लगे है निसार
मधुवन के कुञ्ज में, सूने सघन निकुंज में,बैरी बिरहा अगनि लगावत है समीर
डगर ओर नैन किये, बाट तकूं मैं प्रिये, चंदा की शीतलता बढ़ावत है पीर
सांझें जो बीती साथ,मन में मचांए उत्पात, तन मन सगरो आज भयो है अधीर
कितनी लगाई देर,थक गई मैं टेर टेर, जमुना को सूनो परो तडफावत है तीर
संग जो बिताये पल, छिन छिन करत आकुल, कोऊ नहीं पास मन जो बंधाये धीर
मेंहदी रचे हाथ वो, महावर भरे पांव दो, पावों की पैजनियाँ सुधि भर आये मंजीर
मोहक मुस्कान तेरी, सुधि बुधि हिरात मेरी, रस भरे बोल हिय में खैंचत हैं लकीर
बिछुड गयी सारी आस, मन्द हुयी हर श्वास, मिलन की करौ पिय कछू तो तदवीर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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