कौन संकेत देता रहा
कौन संकेत देता रहा है अहर्निश
कौन अंतस में बैठा है प्रहरी बना
जिसने रोका सदा, भूल से भी न हो
कार्य ऐसा कि हो जिससे अवमानना
जो हितैषी परम सारे संसार का
प्राणियों हेतु जो व्यस्त है अनवरत
त्रिलोकों को जो है संभाले हुए,
जिसके आदेश से है प्रकृति कार्यरत
भ्रम में डूबे हुए हम न पाए समझ
उसकी दयावन्त पहचान को
भोगते भी हुए सौख्य साधन सभी
भूलते ही रहे उसके ऐहसान को
अगर चाहते उसकी रहमत सतत
जिंदगी अंधकारों में अविचल बहे
तो अहम् भूल मुठ्ठी बंधी खोलकर
मैं हूँ याचक यहाँ भावना ये रहे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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