उड़ान में विघ्न नडालो
आज देश परवाज़ भर रहा इसकी उड़ान में विघ्न न डालो
औचित्य यही इस पुण्य यज्ञ में कर्माहुति दे अगत संभालो
जब एक बार बन गया हौसला ऊंची उड़ान भर लेने का
तो देख रहे क्या आसमान, डैने खोलो दमख़म अजमालो
आज मनीष गणों का जमघट जनमेजय यज्ञ कर रहा है
काले व्यालो बच न सकोगे चाहे खुद को कहीं छुपालो
पिछले सात दसक में कितने अपने हमको लूट ले गए
उठ विवेक से नीर क्षीर कर, प्रजातंत्र की लाज बचा लो
व्यक्ति खड़ा जो पंक्ति अंत में आकुल निगाह से देख रहा है
आशाये उसकी ध्वस्त न हों बढ़कर ढांढस दो गले लगा लो
एक अकेले के साहस की, अपनी सीमा होती है "श्री"
इससे पहले थक जाए वो अवरोधक गांठे मिल सुलझालो
श्रीप्रकाश शुक्ल
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