Monday 5 February 2018

सूर्य फिर करने लगा है
जगत में चहुं ओर फैलीं हैं समस्यायें बड़ी
मौसमों की चाल से जो होगयीं आकर खड़ी
थी निकलनी धूप जब,बरसात की लगती झड़ी
सूर्य फिर करने लगा है जानकर धोखाधड़ी

करवट बदल बेसमय, जलचक्र को बाधित करे
सागर रहे जब शान्त मन नभ में पयद कैसे भरे
प्यासी रहे सारी धरा हों, त्रसित सब चल अचल
हठधर्मिता ऐसी अजानी हों सभी साधन विफल

फिर भी है ये जगतात्मा प्रकृति का पोषण करे
कीटाणुओं का नाशकर तत्व पोषक तन भरे
किरण जिसकी मनुज की ढेरों व्यथायें नष्ट कर दे
पर न जब मिल पाए तो शक्ति प्रतिरोधक ही हर ले

दे रहा ऊर्जा सतत संभव हुआ जीवन है जिससे
लाभकारी सुलभ जो सारा जगत चलता है जिससे
आधार है सांसों का वो हम पूजते इसलिए उसको
है सौर्यमंडल का वो तारा मानते सब दिव्य जिसको

श्रीप्रकाश शुक्ल

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