Monday 5 February 2018

पहने बस सन्नाटा

छोटा सा था नीड़ मेरा जिसमें कुछ पंछी रहते थे 
सर्दी, गर्मी, बरसातों  की चोटें  हँस कर सहते थे 
किलकारी की गूंजों से रहा चहकता कोना कोना 
झंझावात सहे बचपन में, कभी न परआया रोना 

धीरे  धीरे  लक्ष्य  मिल गया, पाँखों में शक्ति आयी 
सोचा सब  मिल साथ रहें , करें हौसला अफजाई 
हेतु रहा सब उड़ें गगन में साथ देश का नाम  चले 
हो कितना भी पथ अनागम्य, नैराश्य न ह्रदय पले  

कहते हैं संकल्प सुदृढ़ यदि, कुछ न असंभव होता है 
शक्ति का उपयोग सही अभिभव चरणों को धोता है 
हुआ वही प्रत्याशित जो था पंछी सब हो गए प्रवासी 
पहने बस सन्नाटा आँगन आज ढ़ो रहा गहन उदासी 

हमें न दुखता एकाकीपन, धीरज धर सह लेता हूँ 
यादें अतीत की सन्मुख ला अनुरत  हो रह लेता हूँ 
है पूरा संतोष  ह्रदय, जो हुआ सभी वो ठीक हुआ 
मेहर रही परवरदिगार की,अवसादों ने नहीं छुआ 
 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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