हार है या जीत मेरी
टेर अन्तस की सुनो हो निरत निज कर्म सत चित
बाधाएं सुरसा सी अनेकों आयेगीं मुंह को पसारे
पाओगे डसने को आतुर आलोचकों के बृन्द सारे
मत भूलना तुम एक कवि हो और कवि सच्चा रहा है
जग में कलुश जो भी दिखा सब निडरता से कहा है
इतिहास साक्षी है नहीं कोई भी कवि अब तक बिका है
सच के समर्थन में अटल अपने मनोबल पर टिका है
हार है या जीत मेरी इस प्रश्न का औचित्य क्या है
जब कि मन स्तर पर उगी ये भावना की प्रक्रिया है
लक्ष्य ले कोई चलो सम्भावना दोनों की सम है
हार में जो मुस्कुराते वो जीत से किस तरह कम है
श्रीप्रकाश शुक्ल
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