Saturday 15 December 2018

मैं ने उसको छुपाके

आज अचानक उठा कसककर,
अल्हड़ शावक सा प्यादा
मैंने उसको  छुपाके रक्खा
अर्द्ध शतक से भी ज्यादा

 उम्र बीस इक्किस की तो,
कच्ची ही मानी जाती है
चंचल मन चल देता है, 
अध कचरा लिए इरादा 

आया चुपके से था वो
इक भोली चितवन मेंं बिंधकर
बस बनकर टीस पसर बैठा,
व्याकुल कर, मन सीधा सादा

पथ मेंं बैठी अनगिन शंकायें,
सुरसा सा डरपा जातीं थींं
डर था कभी भूल न हो,
जिससे चोटिल हो मर्यादा

आज एक हल्की सी आहट
कानों मेंं कह जाती है "श्री"
 हमने भी चुपचाप सहा है 
जैसा रहा आपका वादा ।

श्रीप्रकाश शुक्ल

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