फूट पडे पतझर से
झरने दो पात विसंगति के, नव पल करवट लेता है
जग मेंं झंझावात अनेकोंं, अनचाहे दुख देते हैं
मन के विकार झर जाने दो, बदलाव प्रेरणा देता है
जीवन मेंं संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता देखा,
कर्मठ नाविक,भंवर फंसी नौका को सकुशल खेता है
झुलस चुके नवयुवक आज के, तप्त हवाओं को सहते,
पर होंसले अभी तक जिन्दा हैं, निश्चय एक प्रणेता है
शिशिर समीरण के झोंके तन को मृत प्राय किये जाते "श्री"
पर यही समय है परिवर्तन का, संकेत शुभ घडी का देता है ।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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