अब यदि कोई मेरे पथ पर
मैं भारत हूँ,
सत्य अहिंसा का पूजक,
मानवता है धर्म मेरा
संकल्पित हूं, परहित मेंं हो,
जीवन का हर एक सवेरा
मैं उन ऋषियों का अभिभावक हूंं,
जो थे त्याग और तप की मूर्ति
मानव कल्याण ध्येय था जिनका,
अस्थियाँ समर्पित कर, दी आहुति
मैं भारत हूँ,
सर्वान्मुखी सब का विकास हो,
लेकर लक्ष्य बढ़ रहा आगे
नीतियां सुगढ़ जन जन के हित,
शिक्षा ऐसी, नव ऊर्जा जागे
अब कोई यदि मेरे पथ पर
अवरोधक शूल बिछाता है
भोली जनता को बहकाकर
सत पथ से दूर हटाता है
तो मेरी सहिष्णुता को वो,
मेरी दुर्बलता तनिक न समझे
परिणाम दुरुह हो सकते हैं,
बिन कारण मत आकर उलझे
मैं भारत हूँ,
मानवाधिकार, अभियोग खुला,
इनकी भी इक सीमा होती है
यदि प्रतिरोध समाज के हित हो,
स्वेच्छा से स्वीकृत होती है
मैं बांह पसारे खड़ा हुआ,
उर खोल निमंत्रण देता हूं
आओ साथ बढ़ो मेरे,
पलकों पर रख लेता हूं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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