Saturday 15 December 2018

कहो कैसे हो

जब से छोड़ गांव की गलियां, शहर आपको भाया
तब से उदास बैठी हैं सब, जैसे उठा शीष से साया 

देवी की मठिया, ताल तलैय्या, पूछ रहे हैं विह्वल सब 
तात कहो कैसे हो तुम, बिना सबब क्यों हमेंं भुलाया

गाय रभांती दरबाजे पर, सहसा ही रुक जाती है 
अश्रु झलकते हैं आंखों मेंं, जैसे कोई सुधि मेंं आया 

धन्य हुआ था गांव हमारा, जब फौजी अफसर चुने गये तुम 
नाच रहा था बच्चा बच्चा, दिल मेंं था आनन्द समाया।

सेवा काल समाप्त हो गया अब तो घर आ जाओ "श्री"
सारा गांव खुशी से झूमे, तुमनें अपना फर्ज़ निभाया  ।

आंंखें मेरी भी नम होतींं, याद गांव की जब आती है
आत्मीय जनों का साथ छोड़, क्यों भौतिकता मेंं जी भरमाया 

श्रीप्रकाश शुक्ल


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