फूट पडे पतझर सेफूट पडे पतझर से किसलय सी, मुस्कान तुम्हारी रशके कमर
इस सूख रहे तरु की काया को क्या 4एक बार छू लेगी आकर
बैसे तो मिलन कली का और भंवर का पतझर में नामुमकिन है,पर कहते हैं सब संभव है, चाहत जब मचले अकुलाकरप्रेम कथाएं भर कर मन मेंं कब तक बैठी रहोगी उन्मन,उष्ण पवन का झौंका तुमको कर देगा विह्वल इठलाकरशिशिर शीत में घुलकर जब भी याद तुम्हारी आती है,भीनी खुशबू अलकों की, प्राणों मेंं भर देती सुख सागरजीवन का अर्थ निर्रथक "श्री "जब एकाकी चलना होअवसादग्रस्त, पीडादायक, चंचल मन रखता भटकाकरश्रीप्रकाश शुक्ल
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