Saturday 15 December 2018

फूट पडे पतझर से 

फूट पडे पतझर से किसलय सी, मुस्कान तुम्हारी रशके कमर 
इस सूख रहे तरु की काया को क्या 4एक बार छू लेगी आकर

बैसे तो मिलन कली का और भंवर का पतझर में नामुमकिन है,
पर कहते हैं सब संभव है, चाहत जब मचले अकुलाकर

प्रेम कथाएं भर कर मन मेंं कब तक बैठी रहोगी उन्मन, 
उष्ण पवन का झौंका तुमको कर देगा विह्वल इठलाकर

शिशिर शीत में घुलकर जब भी याद तुम्हारी आती है,
भीनी खुशबू अलकों की, प्राणों मेंं भर देती सुख सागर

जीवन का अर्थ निर्रथक "श्री "जब एकाकी चलना हो 
अवसादग्रस्त, पीडादायक, चंचल मन रखता भटकाकर 

श्रीप्रकाश शुक्ल

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