Wednesday, 27 May 2020

मैं किसान हूँ भारत का

महिमा मंडन बहुत हुआ 
पर अब नहीं सुहाता है

हर पांच साल के अन्तराल पर
लाल किला चिल्लाता है
करवट लेेगी कुबेर दृष्टि
पर चन्द्रगुप्त मुंह बिचकाता है  

सो जाता दिन जब पर्दों में 
सारा कुनबा उठ जाता है 
तपते हुये आसमान मेंं 
खेतों मेंं खफ जाता है

फसल ठीक तो होती है
घर तक मुठ्ठी भर जाता है
लिया उधारी का जो कुछ
खेतोंं पर ही चुक जाता है

जब कहते मुझे अन्नदाता
कोई कहते भाग्य विधाता
अन्तस में उठती एक पीर
अब "श्री" कुछ नहीं सुहाता है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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