Wednesday, 27 May 2020

वातावरण मेंं जब उदासी

वातावरण में जब उदासी सर्वत्र हो चादर पसारे
अश्रुपूरित आंख हो, हो आर्त ध्वनि हर एक द्वारे

हो समस्या जटिल इतनी सूझे न कोई हल कहीं
अनिवार्य है उस पल मनुज हो,आत्मबल के ही सहारे.

इक नाव में बैठे सभी ड़ूबते,बचते हैं सारे साथ ही,
लाज़िम है नाविक को दें सब हौसला, वो लगा सकता किनारे 

धैर्य, संयम, प्रेम, निष्ठा सात्विक कुछ भाव हैं,
संजीवनी साबित हुये हैं, कष्ट कितने भी उबारे
 
आदमी वो है  "श्री" जो मुसीबत मेंं न विचले 
क्या कोई मुश्किल है ऐसी जो नहीं टरती है टारे

श्रीप्रकाश शुक्ल

No comments:

Post a Comment