चढाये मैंने कुछ स्वर
निज पौरुष ही संबल था, विश्वास तनिक न भावी पर
है मेहनत ही प्रधान जीवन में, ऐसा सारे जग ने जाना
बिन पुरषार्थ न तिनका खिसकेगा ऐसा मैंने भी माना
मिली कुबेर निधि जीवन में पर मन में पौढ़ी अशांति थी
हिय में व्याकुलता की लहरें, कुछ अजीब सी भरी भ्रान्ति थी
गुरु ने समझाया, वत्स न जब तक पास इष्ट के जाओगे
सब कुछ पा सकते हो,पर मन की शान्ति न पाओगे
पहुंचा तुरन्त ही इष्टदेव घर, चढाये मैंने कुछ स्वर
हलचल हुयी हृदय मेंं, उपजी सुखदायक आवाज मधुर
यदि प्रेम, सहिष्णुता, भाई चारा जीवन पथ में अपनाओगे
और साथ में निष्ठा प्रभु पर, निःसंदेह शान्ति सुख पाओगे ।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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