Thursday, 14 May 2020

धूप छाँह हो जाने वाले  
 
मानव जीवन इक क्रीड़ा स्थल है 
आपाधापी है,उथल पुथल है 
है नाच रहा नर, मर्कट जैसा 
नचा रहा है,भौतिक सुख पैसा 

धूप छाँह हो जाने वाले, 
शीश बिठा, ठुकराने वाले 
खेल, अनेकों पड़ें खेलने 
हार जीत क्षण,पड़ें झेलने  

आते कभी हवा के झोंके 
मेघों की मार तड़ित के टोंके 
जग कहता विधि के लेखे है 
अंतस कहता मिटते देखे हैं 

जीतते वही, जो कर्मवीर हैं 
मंजिल पाने को अधीर हैं 
जिनके मन विश्वास अटल है 
सद्भावों की "श्री" है, निष्ठा का बल है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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