Wednesday, 27 May 2020

दहाड़ी मजदूर

वो पौ फटने के पहले ही झुग्गी से बाहर आजाते हैं
गैंती, फावड़ा, औजारों संग चौराहे पर जम जाते हैं 

टकटकी लगाए पगडण्डी पर 
पूरी दोपहर गुजरती है 
सूरज के तीखे तेवर भी इनको डिगा नहीं पाते हैं  
 
किस्मत ने यदि साथ दिया तो
कोई फरिस्ता ले जाता है 
सो जाता दिन जब पर्दो में ये खेतों में खट जाते हैंं

मजबूरी के दौरो ने मजबूत बनाया है इतना 
आंधी, पानी तूफानों मेंं भी
ये कोसों चल जाते हैं 

इस हालत के जिम्मेदार हैं "श्री" सत्ता के भूखे लालची द्विपद
रख इन्हें अशिक्षित जो अपना उल्लू सीधा कर पाते हैं 
 
श्रीप्रकाश शुक्ल

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