धूप से उठ के दूर
( मेरे बापू )
हर चाहत को जिसने, दिया प्यार का साया
तपता रहा रात दिन जो, बस मेरी ही खातिर
मेरी खुशियों को जिसने, जीवन ध्येय बनाया
जब भी उसको लगा कि मैं थोड़ी उदास सी हूं
खुद भी उदास ही रहा, न जब तक कारण दूर हटाया
ये कौई भी और नहीं है, केवल मेरा बापू है
जिसने मेरे परवरिश यज्ञ मेंं, अपना सर्वस्व चढ़ाया
दुनियां के सभी चहेतों मेंं, "श्री" बापू से बढ़कर और नहीं
मैं उसे कभी न बिसरा पाऊंगी, उससे बढ़कर कौई न भाया
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment