नया प्रष्ठ फिर आज खुला है
राजनीति के इत्तिवृत का, नया प्रष्ठ फिर आज खुला है
सभी दिखे कालिमा समेटे, नहीं दूध का कोई धुला है
उद्देश्य रहा सत्ता मेंं जाकर, जन हित कार्यों मेंं जुट जायेंं
कितना किसका योगदान है, जनता द्वारा रोज तुला है
लोक तंत्र मेंं वो ही नायक समुचित सम्मान जुटा पाता है
जिसके दिल मेंं संवेदना ढ़ेर सी, सच्चा प्यार घुला है
निस्वार्थ भाव से सेवा का व्रत, तभी सफल हो सकता है
जब इन्द्रियां नियन्त्रित हों, मानव मन बड़ा चुलबुला है
जीवन मेंं सदभाव, प्रेम ही संचित योग्य अमूल्य निधि हैं
प्राणवायु अस्थिर "श्री" तन मेंं, उड़ता हुआ बुलबुला है ।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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