Friday, 17 May 2019

अपने बियावान सन्नाटे

अपने बियाबान सन्नाटे मेंं कब तक तू कैद रहेगा
दर्द न बाहर आ पायेगा जब तक चुपचाप सहेगा

 मिलना और बिछुड़ना जग मेंं स्वाभाविक सी रीति रही है 
इन्हें संजोएगा आंचल मेंं  तो फिर कष्ट सहेगा

पंछी जो पाले थे तुमने, वो तुम से थे, नहीं तुम्हारे थे 
नीड़ छोड़ उड गये अगर तो कब तक यादों मेंं बहेगा

चिन्तन मनन ध्यान और पूजा या संगीत साधना हो 
इनका आश्रय प्रामाणिक है, बेशक मन का बोझ ढ़हेगा

भावना नियन्त्रित रहे अगर "श्री " मन भी स्थिर हो सकता है 
दिशाहीन पथ त्याग बंधा मन निश्चय सदमार्ग गहेगा

श्रीप्रकाश शुक्ल

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