वेटेरन का खुला प्रस्ताव
संकट की ऐसी घड़ी मेंं आवाज़ दो
हम आयेंंगे
दुश्मन की ये नापाक हरकत खुल के संदेशा दे रही
अब रहे निश्क्रिय तो जग मेंं भीरु ही कहलायेंगे
भूल मानव मूल्य जब बाध्य दुश्मन कर रहा है ।
शेष कोई मार्ग अब बचता नहीं जिसको हम अपनायेंगे
संकल्प ले आगे बढ़ो, सम्मान सारा दांव पर है
विश्वास रक्खो एक जुट हम विजय निश्चिंत पायेंंगे
जिन मानकों पर अब तलक हम सदा गर्वित रहे "श्री"
उनको दोहरा कृत्य से, नव इत्तिवृत इक बनायेंंगे ।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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