Friday, 17 May 2019

नई सुबह के लिये 

नई सुबह के लिये प्रतीक्षित आतुर मन सो सका न पल भर  
सुबह उठा खिड़की खोली, थे भरे तिमिर से भू अम्बर

जन सैलाब सडक़ पर था, था खतरे से सौ गुना प्रदूषण
यद्धपि सभी मास्क पहने थे, फिर भी दस गुना जा रहा छनकर 

मोटर कार, सायकिल, रिक्सा, साथ चल रहे कदम मिलाकर 
अर्द्ध नग्न भूखे बच्चे थे भीख मांगते दौड़ दौड़कर 

रोजगार दफ्तर के आगे भीड़ लगी थी मेले जैसी 
शान्त व्यवस्था रखे हुये थे, चन्द सिपाही हांक हांक कर 

जब पावन भू पर जन्मेंं हम, तब ये सोने की चिड़िया था
आज देख उसकी हालत "श्री" मन रोता है विलख विलख कर 

श्रीप्रकाश शुक्ल

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