पूजनीय कान्ति जिज्जी ब्रह्मलीन हो गयीं आज
आत्मा विदा ले गयी
छोटे बडे सभी की आखों से दुखद अश्रु की झड़ी दे गयी
इतना विसाल आत्मीय सौम्य व्यक्तित्व
न देखा था हमने
अपने स्नेह की अमिट छाप दे प्रतिदिन रोने की घड़ी दे गयी
सेवा भाव हृदय में भर निज कर्तव्यों पर अटल रही जो
कैसे शान्त रहेंं आपद मेंं ऐसी शिक्षा की इक लड़ी दे गयी
जीवन साथी की देख रेख मेंं अपना तन मन अर्पण कर,
निष्काम भाव से कैसे जुटते इस की इक पावन कड़ी दे गयी
मेरी पूजनीय जिज्जी जो थी शान्ति स्वरुपा कान्ति नाम "श्री"
इस नश्वर जग को छोड सदा को हम सब को सीखें बड़ी दे गयी
संतप्त हृदय
श्रीप्रकाश
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