Friday, 17 May 2019

घिरता है अंधियारा

प्रतिनिधित्व बिक रहा आज, खुले हुये बाजारों मेंं
लोकतंत्र मेंं एक वोट की कीमत लगी हजारों मेंं

प्रत्याशी कह रहे साफ, वोट तुम्हारा इक निवेश है
जब चाहो भुनवा सकते हो, करो उजागर यारों मेंं

ऐसे बिगड़े प्रजातंत्र मेंं, घिरता है अंधियारा ही
जनता होती दीन हीन, पलते चोर बहारों मेंं

नैतिकता गिरते गिरते आज रसातल पहुंच गयी है 
कदाचार मेंं माहिर नेता, निगलें धन कोष डकारों में

ये चिन्ता नहीं सर्वव्यापी, "श्री" केवल भारत में पनपी है 
इसका निराकरण डंडा है, जोश हो 
घर के रखवारों मेंं 
श्रीप्रकाश शुक्ल

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