शब्द के गजरे
शब्द के गजरे सजाऐ, प्रेरणा की वेणियों मेंं,
पर न कोई झूल पायी, खिलखिलाती
हृदय पट पर
बन्दिशों के क्लिप उन्हें जकड़े हुए हैं इस तरह
कुछ कर गुजरने की हुमक दम तोड़ती है तड़प कर
शक्ति की असमानता के गलत भ्रम को दूर करने
पुरषार्थ के हर कार्य को हमने संभाला सहज बढ़कर
और तुमने शब्द पुष्पों से तनिक सम्मान देकर
पंथ अवरोधित किया बन रुढ़ियां दुष्कर
मैं आज संकल्पित सजग अपने हितों को मांगती
लेकर रहूंगी भाग अपना सम्पत्ति, साधन, समय मेंं
स्वयं निर्धारित करूंंगी किस तरह हो उचित वितरण,
सब सार्वजनिक सुख साधनों का एक लय में
श्रीप्रकाश शुक्ल
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